लेखनी कविता -कुतुब मीनार - बालस्वरूप राही
कुतुब मीनार / बालस्वरूप राही
ईफिल टावर झुका हुआ है,
सीधी खड़ी कुतुब मीनार।
कई शासकों सेनापतियों-
का है यह सपना साकर,
हिन्दू-मुसलमान दोनों को
एक सरीखा इससे प्यार।
तरह-तरह के सुन्दर मनकों
की है लड़ी कुतुब मीनार।
पाँच-पाँच मंज़िलें अनोखी
बनी हुई है सीढ़ीदार,
ऊपर से नीचे देखो तो
चींटी सी लगती है कार।
ऊँचाई की बात करो तो
बेहद बड़ी कुतुब मीनार।
चारों तरफ नजर रखती है,
यह दिल्ली की पहरेदार,
आठ-आठ सदियाँ बीती पर-
अब भी इस पर वही निखार
आँधी-बिजली, तूफानों से
जमकर लड़ी कुतुब मीनार।